बाँकी है ।
फैल चुके हो गुब्बारे की तरह तुम
बस एक कील चुभाना बाँकी है ।
प्रश्नों की श्रृंखला से घेर चुका हूँ तुमको
बस एक आरटीआई लगाना बाँकी है ।
काफी परीक्षा हो चुकी हमारी
अब तो मात्र प्रमाणपत्र लेना बाँकी है ।
भ्रष्टाचार के चारों तरफ पेट्रोल डाल चुका हूँ मैं
अब आग ईमानदारी का लगाना बाँकी है ।
क्रिकेट के पचड़े में ही पड़े रहेंगे जमाने वाले
देश की समस्याओं का समाधान अभी बाँकी है ।
भरोसा दिलाया है वित्तमंत्री ने हमको
सब कुछ ठीक हो जाएगा एक झटके में
बस काला धन को वापस लाना बाँकी है ।
बिना तैयारी के हम चले थे नक्सलवाद मिटाने
कुछ लाश और आने बाँकी है ।
समया को ये नहीं उपर से देखेंगे
इतजार करें, एक नया आयोग बनना बाँकी है ।
खत्म हो गई अब सीबीआई के प्रति विश्वसीयता
पता नहीं क्यों कुछ लोगों को अभी भी आस बाँकी है ।
हद की सीमा पार करनेवाले पता नहीं क्यों है बेखबर
उनको हद में लाने वाले अंकुश का निर्माण अभी बाँकी है
क्या हिटलरशाही व्यवस्था ही ठीक कर सकती है देश को?
या देश की जनता को बापू के प्रति विश्वास अभी बाँकी है ।
वादा है मेरा आपसे नकाब हटा दूँगा उनका
सुबह देखना फिर एक सच्चाई, अभी तो रात बाँकी है
सावधान कर रहा हूँ गाँव के प्रेमियों को
खास पंचायतों के फैसले आने बाँकी है ।
- गोपाल प्रसाद
4/19 A, साकेत ब्लॉक
मंडावली, दिल्ली - 92
मो० - 9289723145
मंगलवार, 4 मई 2010
तनहाई के तराने
रोशनी से दूर
बादलों के घेरे में
फिजा मेरी तकदीर लिखती है
बेरहम अंधेरों में
न जाने कौन सी नशीली चाहत
घूंघट ओढ़े आती है
दबे पांव रात के सन्नाटे में
मेरे दिल को बहलाने,
काश, पल भर कैद होती तकदीर
उस हसीन तनहाइयों में
आरजू है इस मुसाफिर की
मंजिल मिले न मिले
जिन्दगी का कारवां चलता रहे
उस लम्हे की तलाश में
खोया है जो किसी हसीन
पलकों के साये में
जैसे भटके हुए सुर चलें
अपनी साज की तलाश में ।
- सोमनाथ सरकार
बादलों के घेरे में
फिजा मेरी तकदीर लिखती है
बेरहम अंधेरों में
न जाने कौन सी नशीली चाहत
घूंघट ओढ़े आती है
दबे पांव रात के सन्नाटे में
मेरे दिल को बहलाने,
काश, पल भर कैद होती तकदीर
उस हसीन तनहाइयों में
आरजू है इस मुसाफिर की
मंजिल मिले न मिले
जिन्दगी का कारवां चलता रहे
उस लम्हे की तलाश में
खोया है जो किसी हसीन
पलकों के साये में
जैसे भटके हुए सुर चलें
अपनी साज की तलाश में ।
- सोमनाथ सरकार
हालचाल
जब भी कोई कहता है
‘सुनो आदमी’
समझ में आता है
कि अपने भीतर के
जंगल और जानवर को मारो,
जब भी कोई कहता है
‘बनो आदमी’
समझ में आता है
कि मेरे भीतर
कितना बचा है
जंगल और जानवर?
लेकिन
एक फर्क है
आदमी और जानवर में
जानवर,
भविष्य की योजनाएं तो बनाता है
लेकिन नहीं रख सकता यादों में
किसी को सहेजकर
और मैं,
उल्टे पांव चलती इस दुनिया में
जो मुझे अच्छा लगा
उसे भूलना नहीं चाहता...
बताइएं,
कैसे हैं आप?
- अजय यादव
‘सुनो आदमी’
समझ में आता है
कि अपने भीतर के
जंगल और जानवर को मारो,
जब भी कोई कहता है
‘बनो आदमी’
समझ में आता है
कि मेरे भीतर
कितना बचा है
जंगल और जानवर?
लेकिन
एक फर्क है
आदमी और जानवर में
जानवर,
भविष्य की योजनाएं तो बनाता है
लेकिन नहीं रख सकता यादों में
किसी को सहेजकर
और मैं,
उल्टे पांव चलती इस दुनिया में
जो मुझे अच्छा लगा
उसे भूलना नहीं चाहता...
बताइएं,
कैसे हैं आप?
- अजय यादव
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