मंगलवार, 4 मई 2010

तनहाई के तराने

रोशनी से दूर
बादलों के घेरे में
फिजा मेरी तकदीर लिखती है
बेरहम अंधेरों में

न जाने कौन सी नशीली चाहत
घूंघट ओढ़े आती है
दबे पांव रात के सन्‍नाटे में
मेरे दिल को बहलाने,
काश, पल भर कैद होती तकदीर
उस हसीन तनहाइयों में

आरजू है इस मुसाफिर की
मंजिल मिले न मिले
जिन्दगी का कारवां चलता रहे
उस लम्हे की तलाश में
खोया है जो किसी हसीन
पलकों के साये में
जैसे भटके हुए सुर चलें
अपनी साज की तलाश में ।

- सोमनाथ सरकार

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