बुधवार, 7 अक्तूबर 2009

अर्थ

सत्य अहिंसा के केवल भाषण हैं चल रहे,
चार कदम आगे बूचड़खाने, मयखाने हैं खुल रहे,
खींच रहें हैं कुछ लोग मेरे अस्तित्व को,
उन भेड़ बकरियों की तरह,
कुछ देर बाद हत्या होगी,
मेरे मूल्य, आदर्श, नैतिकता की,
फिर कुछ लोग भक्षण करेंगे,
मेरे माँस को सुरा के साथ,
होगी फजीहत गाँधी के आदर्शों की,
गाँधी के बलिदान से मिली थी जो आजादी,
आजाद वही लोग दे रहे हैं उनके सिद्धांतों को गाली,
उनका उद्देश्य मात्र गद्दी है पाना,
कमजोरों, मजलूमों के दुखती रग को सहलाना,
सहलाने का अर्थ है सहलाना नहीं बल्कि,
सहलाने का दिखावा करना,
गाँधी के हरिजन बनते रहेंगे मूर्ख,
जब तक नहीं समझेंगे वे अपने शक्‍ति को,
सत्य अहिंसा का अर्थ अब बदल गया है,
गढ़नी होगी अब नई परिभाषा,
दलितों को आजादी की अब भी है आशा ।

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