बुधवार, 7 अक्तूबर 2009

उलझाने लग गए

समझते-बूझते हुए भी हम उन्हें अनजाने लग गए,
व्याकुल किया प्रणय ने इतना,
हम उन्हें मनाने लग गए,
कातिल हाथ से छूट गए उनके मुखौटे हाथ लग गए,
भूखे पंछी खाकर दानों को जाल सहित उड़ाने लग गए,
देखा जो अपनी हार रहनुमाओं ने तो,
नफरत और विध्वंस के बीज बोने लग गए,
विचारों की शक्‍ति ने दी इतनी मजबूती मुझे,
जिनसे डरता था उन्हें डराने लग गए,
बेहोश था जब मैं मुझको मरा समझ लिया,
मेरे वजूद को गिराने लग गए,
शास्त्रार्थ किया जब मुझसे,
झूठे, मक्‍कारों के अक्ल ठिकाने लग गए,
मेरे मौन को झकझोरा था जिसने,
मेरी वाचालता पर पछताने लग गए,
कातिलों की पहुँच है इतनी,
वे जेल में ही महफिल जमाने लग गए,
कैसे सुलझेगी ये हालात गोपाल,
जिन्हें सुलझाना था,
वहीं उलझाने लग गए ।

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