बुधवार, 7 अक्तूबर 2009

खत

कभी काट कर रख देते थे वे अपना जिगर खत में,
नहीं मिलता है अब वह खत,
पाता हूँ इंटरनेट पर उसका ईमेल,
पाता हूँ एसएमएस भी उनका,
पर नहीं मिलती उससे भावनाओं की संतुष्टि,
जब से हाथ का स्थान की बोर्ड ने ले लिया,
बदल गए मूल्य, बदल गई भावना,
बदल गई मौलिक चिंतन,
अनुभूति और भावनाओं का स्पर्श,
क्या ईमेल और एसएमएस पत्र का स्थान ले सकता है?
सोचता है मेरा मन,
सजाकर किताबों में रखता था उनके खत,
क्या कंप्यूटर हमारी भावनाओं को समझेगा?
दिलाएगा मुझे वापस वही शब्द,
वही अर्थ और भावार्थ,
चंद पंक्‍तियों की शायरी और गजल से भीगी,
उनकी याद उनके भावनाओं का सजीव स्पर्श,
है अपेक्षा क ऐसे सॉफ्टवेयर के निर्माण का,
जो दे मुझे सुकून और मेरे प्रश्नों का हल ।

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