बुधवार, 7 अक्तूबर 2009

कविता

पीड़ाओं को सहते-सहते,
बहुत द्रवित हो गया जब,
घायल हो गया मेरा अस्तित्व,
भरने लगा जब मवाद,
मैंने निकाला उसका हल,
दिया रूप अपने वेदना-संवेदना को,
नए कविता के रूप में,
कर लिया संकल्प कविता ही है मेरा दोस्त,
उससे दोस्ती का फर्ज निभाऊँगा,
हर माह नई कविता गढ़ जाऊँगा,
मेरे कविता में होगा शोषण,
विद्रोह और क्रांति का जिक्र,
समस्या नहीं समाधान की है मुझे फिक्र,
कविता है मूक अभिव्यक्‍ति और स्पंदन,
विषय होगा जिसका आँसू, दुःख और क्रंदन,
मेरी कविता में होगी नई दृष्टि,
भावनाओं की होगी जिसमें वृष्टि ।

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