बुधवार, 7 अक्तूबर 2009

निमंत्रण

मत करो विचलित मुझे,
अनेक तरह के लॉलीपॉप दिखाकर,
व्यर्थ है डिगाने का प्रयास करना,
पूजने दो मुझे अपने कर्तव्य पथ को,
करने हैं मुझे अनगिनत काम,
बैठा हूँ मैं अभी साधना की वेदी पर,
देना है मुझे अपने संकल्प की आहुति,
जोड़ना है बिखरी शक्‍तियों को,
महान उद्देश्यपूर्ति हेतु जुड़ना पड़ेगा उन्हें,
हो सकता है मैं ही हूँ वह माध्यम,
होगा अब एक और महाभारत,
कृष्ण का पर्याय गोपाल होगा जिसमें,
तलाश है अब मुझे अर्जुन की,
समन्वय, सहकार, स्वाबलंबन, समाधान जैसे,
अस्त्र, शस्त्र, ब्रह्मास्त्र से मौजूद हूँ मैं,
बन रहा है अभी सुदर्शन,
गद्दारों के गला काटने,
दिया निमंत्रण कुरूक्षेत्र भूमि ने,
कौरवों का संहार करने ।

कोई टिप्पणी नहीं:

एक टिप्पणी भेजें