बुधवार, 7 अक्तूबर 2009

उसकी जिंदगी

वह निरा बेवकूफ ही तो था,
जो वचन पूरा करने के चलते,
लाखों के दहेज को ठुकरा दिया,
किया अपने शर्त्तों पर राजी,
नहीं चला वधू पक्ष का जोर,
क्योंकि था सिक्‍का खोटा जैसा,
शादी का वक्‍त गुजर गया जब,
चलने लगा दिमाग पर हथौड़ा,
दवा के नशे को नींद बताकर,
बाँध दी गई वह सच्चे इंसान के साथ,
हाय रे इंसान की मजबूरी,
पास रहके भी इतनी रहती है दूरी,
जाना उसके महसूस किया उसने,
कर ही क्या सकता था ,
वह बेचारा?लाज का मारा, शर्म से हारा,
जिसे कोई इज्जत न थी अपने घर पर,
घौंस जमाया अपने शौहर पर,
शौहर ने सोंचा जीना है अब बच्चों के खातिर,
चाहे पड़े कितनी मुश्‍किल,
देनी अब है अग्निपरीक्षा,
प्रतिकार का जबाब चुप्पी से देना,
पाई हमने है यही शिक्षा-दीक्षा,
देखा है मानसिक रोगियों के हाल?
पूछो उनसे जो जी रहे हैं,
झेल रहे हैं उनके साथ,
बहुत आसान है एक क्या एक सौ सलाह दे देना,
बहुत कठिन है सौ क्या, एक को ही झेल लेना,
गुजारिश है मेरी ईश्‍वर से यही,
सबों को मानसिक रोगियों से बचाओ,
कोई क्या समझेगा हमारी भावना हमारे आदर्शों को,
प्रतीक्षा है बस यही कौन लगाएगा मरहम मेरे जख्मों को ।

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