बुधवार, 7 अक्तूबर 2009

उनका कसूर है

चला था ईमानदारी की राह पर,
जमाने ने ठुकराया ये उनका कुसूर है,
दोस्तों ने की हमसे दगा,
वो समझते रहे हमें बेवकूफ तो ये उनका कुसूर है,
हैं हमारी भी कुछ अभिलाषाएँ,
झोंक दिया अपने जीवन को,
पूरा करने निज उद्देश्य को,
वे हमें व्यर्थ समझें तो ये उनका कुसूर है,
हूँ आशावान, सकारात्मकता में जीता हूँ,
सुख नहीं मिले तो गम पी लेता हूँ,
कोई कद्रदान न मिला तो ये उनका कुसूर है,
छोड़ दिया सोचना खुद के बारे में,
जीता हूँ बस थोड़े से गुजारे में ,
कोई मजाक उड़ाए तो ये उनका कुसूर है,
जोड़ रहा हूँ बिखरी शक्‍तियों को,
संकल्पित हूँ सबों को न्याय दिलाने,
कोई न समझे तो ये उनका कुसूर है,
क्या नहीं हो सकता, क्यों नहीं हो सकता?
ठान ले जब कोई, जान ले जब कोई,
बाबजूद इसके कर न पाए, तो ये उनका कुसूर है,
उनके ख्याल उनकी चाहत उनको काम आएँगे,
हमारी राह को भटकाएँगे तो ये उनका कुसूर है,
सुना था भरी महफिल में जाम पिलाया था उसने,
मुझको निगाहों से न पिलाया तो ये उनका कुसूर है,
मेरी मंजिल बस करीब आ पहुँची है लेकिन,
इस बार भी न मिली सफलता, तो ये उनका कुसूर है ।

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