बुधवार, 7 अक्तूबर 2009

उनके जाते ही

उनके जाते ही जीवन अब पहाड़ हुआ,
खिलने वाले थे जो कोपल,
मुरझा गए समय से पूर्व ही,
मिलती थी उनके नयनों से शीतलता,
स्वप्न में भी जगा देती थी मुझे वह,
कर्तव्य पालन हेतु देती थी नैतिक दबाब,
उनके जाते ही लगने लगा सूरज भी अंगार,
किसको सुनाऊँगा अपनी वेदना, संवेदना,
दीवारों को कहकर चुप हो जाता हूँ मैं,
उनकी बातों से मिलती थी ऊर्जा मुझे,
उनके जाते ही शिथिल हो गया हूँ मैं,
आशावान हूँ मैं होगी कमी पूरी उनकी,
है इसकी संभावना, मिलेगी वहीं भावना,
खुलेगी बंद खिड़कियाँ,खुलेगा विचारों का प्रवाह,
उनके आते ही खुशबू आएगी,
महकेगी बगिया मेरी जिसके प्रतीक्षा है मुझे।

कोई टिप्पणी नहीं:

एक टिप्पणी भेजें