बुधवार, 7 अक्तूबर 2009

ये लड़कियाँ

खुद इस्तेमाल हो रही ये लड़कियाँ,
पश्‍चिमी सभ्यता के मोहपाश में,
जकड़ी जा रही हैं ये लड़कियाँ,
नहाने के साबुन से कंडोम के विज्ञापन तक में,
अपना जिस्म दिखा रही हैं ये लड़कियाँ,
कभी फैशन शो में, कभी चीयर्स गर्ल बनकर,
जलवे दिखा रही हैं ये लड़कियाँ,
जिस्म को ढकने के बजाय जिसने,
दिखाने की वस्तु बना दिया,
खुद बदनाम हो गई हैं ये लड़कियाँ,
क्या उम्मीद करूँ बनेगी कोई लक्ष्मीबाई,
जन्म लेगी अब कोई सीतामाई?
जब संस्कृति और संस्कार को नहीं जानेगी,
हम क्या थे, क्या हैं और क्या होंगे?
जब तक जानेंगी नहीं ये लड़कियाँ,
गिरती चली जाएँगी, पतन होता जाएगा,
आपको लगता है सम्मान दिलाएँगी ये लड़कियाँ?
इनको सुधारने क्या कोई नया जन्म लेगी?
अब भी वक्‍त है सुधर जाओ संभल जाओ,
गुजरे जमाने का आदर्श छोड़ रही हैं ये लड़कियाँ,
तलाक, हत्या और बलात्कार की शिकार ये हो रहीं,
जिंदा जलाए जाने की खबर बन रही ये लड़कियाँ,
कहाँ गई वो शर्म, हया, वो त्याग , वो भावना,
कभी आदर्श हुआ करती थी ये लड़कियाँ,
शायरों, कवियों, गजलकारों की विषय जो हुआ करती थी,
डॉक्टरों के यहाँ गर्भपात करा रही ये लड़कियाँ,
आजादी का गलत अर्थ जब-जब निकालेंगे,
बद नहीं बल्कि बदतर हो जाएँगी ये लड़कियाँ,
चाहे हो हिंदू, मुसलमान, सिख, या इसाई,
कभी न कभी होंगी परायी ये लड़कियाँ,
सास-ससुर, ननद और देवर-जेठ के नखरे,
शिक्षा दो इनको कैसे भार उठाएँगी ये लड़कियाँ,
नारी के नारीत्व को जब ये अपनाएँगी,
खुद की ही नहीं, समाज की भी पहचान बनेंगी ये लड़कियाँ ।

8 टिप्‍पणियां:

  1. ऐसी ही एक कविता आपको कम से कम उन मर्दों के बारे में भी जरूर लिखनी चाहिए जो समलैंगिक-संबंधों को कानूनन मान्य बनाने की मुहिम चलाए हुए हैं।

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  2. बद्लते परिवेश का सजीव चित्रण बधाई!

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  3. aapki rachna sachchai ko vyakt kar rahi hai...hamen apane saamajik mulyon ki dharoharon ko sambhalna hoga...achchhi prastuti hai

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  4. लड़कियों की मनोदशा और अति महत्वाकांक्षा के साथ साथ "मैं भी कुछ हूँ " इस फोकट फितूर के चलते जो पतन आज कन्याओं और युवतियों में देखने को मिल रहा है ............उस पर ज़बरदस्त और पूर्ण पराक्रम के साथ आपने प्रहार किया है इस कविता में............

    आप अभिनन्दन के पात्र हैं.......

    लेकिन एक बात और भी है जो मन को सालती है कि इस दिशा में कोई ऐसा कम नहीं हो रहा जो इन्हें गर्तगामी होने से उबार सके..........

    फिलहाल इस कविता के लिए आपको साधुवाद !

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  5. गोपाल जी बहुत ही प्रभावशाली कविता लिखी है आपने...वाकई इस समानता की दौड़ में हम अपना अस्तित्व ही भूल चुके हैं और लगातार पतन की तरफ अग्रसर हैं. बहुत अच्छा लगा आपकी रचनाएँ पड़कर..

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  6. Its one sided blame ,which has imposed on girls only.We should keep in mind ,actully they show on our demand and ASAP.

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  7. बहुत ही कड़ुआ सच आपने लिखा है!
    बढ़िया कविता है!

    भइया जी अगर कमेंट चाहिए तो
    टिप्पणी से WORD-VERIFICATION की
    मर्यादा हटा दीजिए।

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  8. duniya rasatal kee or badhti jaa rahi hai
    kyonki sharm haya se dur ho gaye hain sab
    ladkiyon ko banate the maa-baap
    ab we hi nagnata kee taraf unko badha rahe hain.........
    kya kar rahi hain ye ladkiyaan
    kya isse anbhigy hain bhai, aur pita?

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